Thursday 15 February 2018

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर

हैलो दोस्तो
         आज मैं आपको एक ऐसे महान इंसान के बारे में बताने जा रहा हु.जिनकी महानता की कोई सीमा नहीं है.जिन्होंने अपनी Society के लिए अपनी family की भी परवाह नहीं की,और अपने देश के उन् नागरिको को वो मानव अधिकार दिलाये जो उन्हें पहले कभी नहीं मिले थे। 20वीं शताब्दी के श्रेष्ठ चिन्तक, ओजस्वी लेखक, तथा यशस्वी वक्ता एवं freedom india के प्रथम कानून मंत्री Dr.B R Ambedkar indian constitution के प्रमुख निर्माणकर्ता हैं। विधि विशेषज्ञ, अथक परिश्रमी एवं उत्कृष्ट कौशल के धनी व उदारवादी, परन्तु सुदृण व्यक्ति के रूप में डॉ. आंबेडकर ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. आंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक भी माना जाता है
छुआ-छूत का प्रभाव जब सारे देश में फैला हुआ था, उन दिनों ही 14 अप्रैल, 1891 को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का जन्म हुआ था। बचपन से ही बाबा साहेब ने छुआ-छूत को महसूस किया था । जाति के कारण उन्हें संस्कृत भाषा पढने से वंचित रहना पड़ा था। कहते हैं, जहाँ चाह है वहाँ राह है। प्रगतिशील विचारक एवं पूर्णरूप से मानवतावादी बङौदा के महाराज सयाजी गायकवाङ ने भीमराव जी को High Education  के लिए  तीन साल तक scholarship  प्रदान की, किन्तु उनकी शर्त थी की america  से वापस आने पर दस वर्ष तक बङौदा राज्य की सेवा करनी होगी। भीमराव ने columbia university  से पहले M.A  तथा बाद में Ph.D  की डिग्री प्राप्त की ।उनके research  का विषय “भारत का राष्ट्रीय लाभ” था। इस शोध के कारण उनकी बहुत प्रशंसा हुई। उनकी scholarship  एक वर्ष के लिये और बढा दी गई। चार वर्ष पूर्ण होने पर जब भारत वापस आये तो बङौदा में उन्हे high Post  दिया गया किन्तु कुछ Social  ironically की वजह से एवं आवासिय समस्या के कारण उन्हें नौकरी छोङकर बम्बई जाना पङा। बम्बई में सीडेनहम कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए किन्तु कुछ Narrow thinking  के कारण वहाँ भी परेशानियों का सामना करना पङा। इन सबके बावजूद आत्मबल के धनी भीमराव आगे बढते रहे। उनका दृण विश्वास था कि मन के हारे, हार है, मन के जीते जीत। 1919 में वे पुनः लंदन चले गये। अपने अथक परिश्रम से एम.एस.सी., डी.एस.सी. तथा बैरिस्ट्री की डिग्री प्राप्त कर भारत लौटे।

1923 में बम्बई उच्च न्यायालय में वकालत शुरु की अनेक कठनाईयों के बावजूद अपने कार्य में निरंतर आगे बढते रहे। एक मुकदमे में उन्होने अपने ठोस तर्कों से अभियुक्त को फांसी की सजा से मुक्त करा दिया था। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया। इसके पश्चात बाबा साहेब की प्रसिद्धी में चार चाँद लग गया।

डॉ. आंबेडकर की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी। वह इसे मानव की एक पद्धति (Way of Life) मानते थे। उनकी दृष्टी में राज्य एक मानव निर्मित संस्था है। इसका सबसे बङा कार्य “समाज की आन्तरिक अव्यवस्था और बाह्य अतिक्रमण से रक्षा करना है।“ परन्तु वे राज्य को निरपेक्ष शक्ति नही मानते थे। उनके अनुसार- “किसी भी राज्य ने एक ऐसे अकेले समाज का रूप धारण नहीं किया जिसमें सब कुछ आ जाय या राज्य ही प्रत्येक विचार एवं क्रिया का स्रोत हो।“

अनेक कष्टों को सहन करते हुए, अपने कठिन संर्घष और कठोर परिश्रम से उन्होंने प्रगति की ऊंचाइयों को स्पर्श किया था। अपने गुणों के कारण ही संविधान रचना में, संविधान सभा द्वारा गठित सभी समितियों में 29 अगस्त, 1947 को “प्रारूप-समिति” जो कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण समिति थी, उसके अध्यक्ष पद के लिये बाबा साहेब को चुना गया। प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. आंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। संविधान सभा में सदस्यों द्वारा उठायी गयी आपत्तियों, शंकाओं एवं जिज्ञासाओं का निराकरण उनके द्वारा बङी ही कुशलता से किया गया। उनके व्यक्तित्व और चिन्तन का संविधान के स्वरूप पर गहरा प्रभाव पङा। उनके प्रभाव के कारण ही संविधान में समाज के पद-दलित वर्गों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के उत्थान के लिये विभिन्न संवैधानिक व्यवस्थाओं और प्रावधानों का निरुपण किया ; परिणाम स्वरूप भारतीय संविधान सामाजिक न्याय का एक महान दस्तावेज बन गया।

1948 में बाबा साहेब diabetes  से पीड़ित हो गए । जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से भी ग्रस्त रहे । अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसंबर 1956 को अम्बेडकर इह लोक त्यागकर परलोक सिधार गये। 7 दिसंबर को बौद्ध शैली के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया जिसमें सैकड़ों हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया। भारत रत्न से अलंकृत डॉ. भीमराव अम्बेडकर का अथक योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता , धन्य है वो भारत भूमि जिसने ऐसे महान सपूत को जन्म दिया ।
जय भीम जय भारत

शिवम् सागर 


Wednesday 14 February 2018

उत्तर प्रदेश के जल में “आर्सेनिक” का जहर.


 हैलो दोस्तों 
           एक तरफ हम विश्व जल दिवस (22 मार्च) मनाने की तैयारी कर रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र सहस्त्राब्दी लक्ष्य घोषित किए जा रहे हैं, लोगों को साफ सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने के जितने प्रयास किए जा रहे हैं वहीं ऐसा लगता है कि मंजिल कोसों दूर होती जा रही है। हाल में मिलने वाली खबरें कुछ ऐसे ही खतरे का संकेत दे रहीं हैं।हाल ही में यूनिसेफ की मदद से उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वे करवाया, जिसमें उत्तर प्रदेश के बीस से अधिक जिलों का भूजल “आर्सेनिक” प्रदूषित पाया गया है। सर्वे की प्राथमिक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 31 जिले और ऐसे हैं जहाँ यह खतरा हो सकता है, हालांकि उनकी विस्तृत जानकारी अभी सामने आना बाकी है। चौंकाने वाली यह खबर उत्तर प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री दद्दू प्रसाद ने विधानसभा में दी। हिन्दू महासभा के सदस्य राधामोहन अग्रवाल के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रसाद ने बताया कि यूनिसेफ द्वारा यह अध्ययन प्रदेश के 20 जिलों के 322 विकासखण्डों में किया गया, जहां आर्सेनिक अपनी मान्य मात्रा 0.05 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से कहीं अधिक पाया गया है।डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार पानी में आर्सेनिक की मात्रा प्रति अरब 10 पार्ट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए या प्रति लीटर में 0.05 माइक्रोग्राम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। लेकिन शोध बताते हैं कि यह इन क्षेत्रों में 100-150 पार्ट प्रति बिलियन तक पानी में आर्सेनिक पहुंच चुका है। बलिया और लखीमपुर जिले सबसे अधिक प्रभावित पाये गये। एहतिहात के तौर पर सैकड़ों की संख्या में हैण्डपम्प सील कर दिये गये हैं। बहराईच, चन्दौली, गाज़ीपुर, गोरखपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, सन्त कबीर नगर, उन्नाव, बरेली और मुरादाबाद, जिलों में भी आर्सेनिक की अधिक मात्रा पाई गई है, जबकि रायबरेली, मिर्ज़ापुर, बिजनौर, मेरठ, सन्त रविदास नगर, सहारनपुर और गोण्डा आंशिक रूप से प्रभावित जिले हैं ।मथुरा में बैराज के कारण यमुना का रुका जल स्थानीय भू गर्भ के लिए खतरा बन रहा है तो मथुरा के आसपास के कुछ स्थानों पर बोरिंग के दौरान लाल रंग का पानी निकलने लगा है।
दिल्ली के मेडिकल संस्थान एम्स की जांच आख्या के अनुसार दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम में दो सौ किलोमीटर के दायरे में आर्सेनिक का एंडमिक क्षेत्र विकसित हो रहा है। इस क्षेत्र को आर्सेनिक के मामले में विश्व के दो सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक कहा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक इसका एक कारण बांग्लादेश से आने वाली गहरी अंत: नलिका तो है ही, गोकुल बैराज से भी जो जल जमीन के नीचे जा रहा है, वह भयंकर रूप से आर्सेनिक को अपने साथ भू गर्भ में ले जा रहा है। यमुना जल में भारी मात्रा में केमिकल कचरा तथा ब‌र्स्ट बोरिंग इसका दूसरा बड़ा कारण माना जा रहा है।

बिहार में तो पटना सहित 12 जिलों के लोग आर्सेनिक युक्त जहरीला पानी पाने के लिए मजबूर हैं। आर्सेनिक युक्त पेयजल के कारण गैंग्रीन, आंत, लीवर, किडनी और मूत्राशय के कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां हो रही हैं। राज्य के जन स्वास्थ्य और अभियंत्रण विभाग के मंत्री प्रेम कुमार के अनुसार, “गंगा के किनारे रहने वाले 1,20,000 लोगों के जीवन को आर्सेनिक युक्त भू-जल से खतरा है”। केंद्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री जयप्रकाश यादव बताते हैं कि कानपुर से आगे बढ़ने पर गंगा में आर्सेनिक का जहर घुलना शुरू हो जाता है। कानपुर से लेकर बनारस, आरा, भोजपुर, पटना, मुंगेर, फर्रुखा तथा पश्चिम बंगाल तक के कई शहरों में गंगा के दोनों तटों पर बसी आबादी में आर्सेनिक से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही हैं।

पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक का कहर सबसे भयानक है, करीब 70 लाख लोग बीमारियों की चपेट में आ गए हैं। लगभग 20 जिले आर्सेनिक प्रभावित हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने राज्यों को सलाह दी है कि जल को शुद्ध किए बगैर पीने के लिए उपयोग में नहीं लाया जाए।

सरकार इस खतरे से निपटने के लिये काम कर रही है और इससे समु्चित ढंग से निपटा जायेगा, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री कहते हैं। वे बताते हैं कि उत्तरप्रदेश जल निगम के अधिकारियों, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, यूनिसेफ़, इंडस्ट्रियल टॉक्सिकोलोजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ, CSM मेडीकल यूनिवर्सिटी और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों की एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया था जिसने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। मंत्री जी ने खुलासा किया कि टास्क फ़ोर्स द्वारा सुझाये गये सभी उपायों पर तत्परता से अमल किया जा रहा है और जनता को आर्सेनिक संदूषित पानी के खतरों के बारे में आगाह किया जा रहा है और साथ ही लोगों से अपील की जा रही है कि वे इस पानी का उपयोग पीने के लिये न करें। विभिन्न इलाकों में खतरे की सम्भावना वाले हैण्डपम्पों पर लाल ‘X’ का निशान लगाया जा रहा है ताकि उसका पानी लोग उपयोग न करें, इसी प्रकार कुछ अन्य जिलों में गहरे हैण्डपम्प खुदवाये जा रहे हैं। बलिया जिले में तो जगह- जगह बोर्ड लगाकर हिदायत दी जा रही है है कि यहां का पानी पीना मना है! और साथ ही गंगा किनारे के गांवों के 117 हैंड पंपों पर लाल निशान लगाए गये हैं। आर्सेनिक के खतरे

आर्सेनिक के जहर वाला पानी नमकीन हो जाता है। अगर आर्सेनिक मिले पानी को लंबे समय तक पिया जाए तो इससे कई भयंकर बीमारियां होनी शुरू हो जाती हैं। पानी में घुलित आर्सेनिक कैंसर के कई रूप, त्वचा कैंसर और किडनी फेल होने जैसी बीमारियों का कारक है। मथुरा के शंकर कैंसर चिकित्सालय के डॉ. दीपक शर्मा के अनुसार आर्सेनिक के प्रभाव से गाल ब्लैडर में कैंसर हो सकता है। वृंदावन पैलिएटिक केयर सेंटर के डॉ. संजय पिशारोड़ी के अनुसार आर्सेनिक और नाइट्रेट के कारण मनुष्य का इम्यून सिस्टम प्रभावित होता है। इससे समय से पहले वृद्धावस्था के लक्षण नजर आते हैं। इम्यून सिस्टम प्रभावित होने पर मस्तिष्क में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। आर्सेनिक से टाइप दो की डायबिटीज का भी खतरा बढ़ जाता है।

आर्सेनिक से प्रदूषित जल के सेवन से धमनियों से संबंधित बीमारियाँ होने और परिणामस्वरूप दिल का दौरा पड़ने और पक्षाघात के ख़तरे बढ़ जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार उन्होंने शरीर में आर्सेनिक के निरंतर प्रवेश का मस्तिष्क से जुड़ी धमनियों में सिकुड़न और अलीचलेपन से प्रत्यक्ष संबंध पाया है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में छपी अनुसंधान रिपोर्ट में आर्सेनिक और कई जल अशुद्धियों को रक्तवाहनियों से जुड़े रोगों का कारण बताया गया है। बांग्लादेश और चीन सहित दुनिया के विभिन्न देशों में चट्टानों में आर्सेनिक की मात्रा पाई जाती है। लंबे समय तक आर्सेनिक प्रदूषित जल के सेवन से त्वचा संबंधी बीमारियाँ भी होती हैं, लेकिन कपड़े धोने या स्नान के लिए इस जल का उपयोग ख़तरनाक नहीं माना जाता है।

आर्सेनिक से मुक्ति का उपायः

आर्सेनिक युक्त जल को अगर खुली धूप में 12-14 घंटे तक रख दिया जाए तो उसमें से 50 फीसदी आर्सेनिक उड़ जाता है। उसके बाद उस जल का इस्तेमाल पेयजल के रूप में किया जा सकता है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे प्रयासों के तहत बंगाल कालेज ऑफ इंजीनियरिंग ने कम्युनिटी एक्टिव एलुमिना फिल्टर का निर्माण भी किया है जो पानी से आर्सेनिक निकालने में मददगार साबित हो सकता है।

वहीं राष्ट्रीय वनस्पति शोध संस्थान के वैज्ञानिक भी इस समस्या से निजात दिलाने के रास्ते खोज रहे हैं संस्थान के वैज्ञानिकों ने उस जीन का पता लगा लिया है जो सिंचाई के बाद आर्सेनिक के स्तर को कम करने के साथ साथ उसे अनाज व सब्जियों में पहुंचने से रोकेगा। इस शोधकार्य में महती भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक डॉ. देवाषीश चक्रवर्ती ने कहा, “यह शोध प्लांट डिदेंस मैकेनिज्म को आधार बनाकर किया गया है”।

ब्रिटेन के बेलफास्ट स्थित क्वींस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी ऐसी किफायती तकनीक विकसित करने का दावा किया है, जिससे आर्सेनिक संदूषित जल की समस्या से निजात मिल सकती है। इस परियोजना के समन्वयक भास्कर सेनगुप्ता ने कहा,"क्वींस के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल, इस्तेमाल में सरल, किफायती और ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध कराई जा सकने वाली दुनिया की एकमात्र तकनीक है।" यह तकनीक आर्सेनिक संदूषित भूमिगत जल के एक हिस्से को पारगम्य पत्थरों में रिचार्जिग पर आधारित है। इन पत्थरों में जल धारण करने की क्षमता होती है। यह तकनीक भूमिगत जल में ऑक्सीजन स्तर को बढ़ा देती है और मिट्टी से आर्सेनिक निकलने की प्रक्रिया धीमी कर देती है। इस तकनीक से पानी में आर्सेनिक की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है।

इस तरह के वैज्ञानिक दावों से उम्मीद की डोर तो बांधी जा सकती है, पर पानी के प्रति सरकारों और पानी के संगठनों को जिम्मेदारी थोड़ा ईमानदारी से निभानी होगी, तभी शायद कोई रास्ता निकले . . .

वैलेंटाइन डे क्यों मनाया जाता है.

हेलो दोस्तों
          क्या आप जानना चाहते है की valentine day क्यों मनाते  है और valentine day की history क्या है. तो ये आपके लिए सही post है,हमारे देश भारत को festival वाला देश माना जाता है.क्युकी यहाँ सभी लोग मिलकर हर festival मनाते है,जैसे होली,दिवाली,क्रिसमस इत्यादि।भारत में जितने भी लोग त्यौहार मनातें  है उन् त्योहारों के पीछे एक कहानी होती है,जो इतिहास के पन्नो पर लिखी गयी है और वो
सभी त्यौहार सदियों से मनाये जाते है इन् त्योहारों को सभी लोग अपने अपने तरीके से मनाते है,एक और दिन जिसे सभी लोग मिलकर मनाते है.जिसे हम valentine day के नाम से जानते है.इस दिन को हम प्यार का दिन भी कहते है,क्या आपने कभी ये सोचा है की क्यों हम 14 february को valentine day मनाते है ?. इस दिन के पीछे भी एक सच्ची और दिल चस्प प्यार भरी कहानी है इस दिन के बारे में शायद आपको पता हो और अगर नहीं पता तो आज मैं आपको बताऊंगा की valentine day क्यों मनाया जाता है,और इसके पीछे का इतिहास क्या है. valentine day एक व्यक्ति के नाम पर रखा गया था जिसका नाम valentine था.इस प्यार के दिन की कहानी की शुरुआत प्यार से भरा हुआ नहीं है,ये कहानी एक दुस्ट राजा और कृपालु संत के बिच मुठभेड के बारे में है.इस दिन की शुरुआत होती है rome की तीसरी सदी से जहाँ एक अत्याचारी राजा हुआ करता था जिसका नाम claudius था. Rome के राजा का मानना था की एक अकेला सिपाही एक शादीशुदा सिपाही के मुकाबले जंग के लिए एक उचित और प्रभाव साली साबित हो सकता है.क्युकी एक शादीशुदा सिपाही को हर वक़्त बस इसी बात की  चिंता लगी रहती है,की उसके मर जाने के बाद उसके परिवार का क्या होगा।और इसी कारण वो जंग में अपना पूरा ध्यान नहीं दे पता है.यही सोच कर claudius राजा ने एलान किया की उसके राज्य का कोई सिपाही शादी नहीं करेगा और जिस किसी ने उसके इस आदेश का उलंघन किया तो उसे कड़ी सजा दी जाएगी।राजा के इस फैसले से सभी सिपाही दुखी थे और उन्हें ये भी पता था की ये फैसला गलत है.लेकिन राजा के डर से किसी ने भी इसका उलंघन करने की कोशिश नहीं की और उसकी इस आज्ञा का पालन करने के लिए मजबूर हो गए.लेकिन rome के संत valentine को ये नाइंसाफी बिलकुल मंजूर नहीं थी इसलिए उसने राजा से छिपकर सिपाहियों की मदत की और उनकी शादी करवाने लगे.जो भी प्रेमी अपनी प्रेमिका से शादी करना चाहते थे वो valen tine के पास आते थे और valentine उनकी मदत भी करते थे  शादी करवा देते थे.इसी तरह valentine  बहुत से सिपाहियों की गुप्त शादी करवा चुके थे.
लेकिन सच ज्यादा दिन तक छुपता नहीं है किसी न किसी दिन सच सबके सामने आ ही जाता है.उसी तरह valentine के इस काम के बारे में claudius राजा के कान में खबर  पहुंच गयी.valentine ने राजा के आदेश का पालन नहीं किया।इसलिए राजा ने वैलेंटाइन को सजा-ऐ-मौत सुना दी और उन्हें जेल के अंदर डाल दिया गया.जेल के अंदर valentine अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे थे और एक दिन उनके पास जेलर आया  जिसका नाम Asterius था। Rome के लोगो का कहना था की valentine के पास एक दिव्या शक्ति थी जिसके इस्तेमाल से वो लोगो को तकलीफ से मुक्ति दिला देता था.Asterius की एक बेटी थी और उसे valentine के पास बसी जादुई शक्ति के बारे में पता था,इसलिए वो valentine के पास जाकर विनती करने लगा की उसकी बेटी की आँखों की रौशनी को अपनी दिव्य शक्ति से ठीक कर दे valentine एक नेक दिल इंसान थे और वो सबकी मदत करते थे इसलिए उन्होंने जेलर की भी मदत की और उनकी अंधी बेटी की आँखों को अपनी शक्ति से ठीक कर दिया।
उस दिन के बाद valentine और Asterius की बेटी के बिच दोस्ती हो गयी थी और वो दोस्ती कब प्यार में बदल गयी उन्हें पता ही नहीं चला.Asterius की बेटी को valentine की मौत होने वाली है ये सोच सोच कर गहरा सदमा लग गया था और आखिर कार वो 14 february वाला दिन आगया था जिस दिन valentine को फ़ासी लगने वाली थी.अपनी मौत से पहले valentine ने जेलर से एक पेन और कागज़ मांगा और उस कागज में उसने जेलर की बेटी के लिया एक अलविदा सन्देश लिखा।पन्ने के आखिर में उसने "तुम्हारा  valentine" लिखा था.ये वो लफ्ज है जिन्हे  याद करते है।
valentine के इस बलिदान की वजह से 14 february को उनके नाम से रखा गया और इस दिन को पूरी दुनिया में सभी प्यार करने वाले लोग valentine को हमेशा याद करते है और एक दूसरे के साथ प्यार बाटते है इस दिन को सभी प्यार करने वाले लोग अपने प्रेमी प्रेमिका को फूल,तोहफे और chocolate देकर अपने प्यार का इजहार करते है. 

तीन कहानियाँ- जो बदल सकती हैं आपकी ज़िन्दगी !

मेरे प्यारे दोस्तों             पढ़िए iPod और iPhone बनाने वाली कंपनी Apple के founder Steve Jobs के जीवन की तीन कहानियां जो बदल सकती हैं...